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ज्योतिष और आत्महत्या

 ज्योतिष और आत्महत्या: ग्रहों के योग और मानसिक स्थिति

  • ज्योतिष में ग्रह-नक्षत्रों का मानव जीवन पर गहरा प्रभाव माना गया है।
  • यह शास्त्र व्यक्ति की मानसिक स्थिति, सोच और व्यवहार को प्रभावित करने वाले कारकों को समझाने का प्रयास करता है।
  • आत्महत्या जैसी त्रासदीपूर्ण घटनाओं के पीछे मनोवैज्ञानिक, सामाजिक और आर्थिक कारण होते हैं, लेकिन कई बार ज्योतिषीय दृष्टिकोण से भी इनका विश्लेषण किया जाता है।

आत्महत्या के लिए प्रेरित करने वाले संभावित ग्रह योग

1. चंद्रमा का कमजोर होना:

  • चंद्रमा मन का कारक होता है।
  • यदि चंद्रमा नीच का हो, शत्रु ग्रहों से पीड़ित हो, या राहु-केतु से प्रभावित हो, तो यह मानसिक अस्थिरता, अवसाद और नकारात्मकता को बढ़ा सकता है।

2. सप्तम और अष्टम भाव का प्रभाव

  • सप्तम भाव का संबंध जीवन के संघर्षों से है
  • अष्टम भाव जीवन के अज्ञात और गूढ़ पहलुओं को दर्शाता है।
  • यदि इन भावों में राहु, केतु या शनि का प्रभाव हो, तो व्यक्ति हताशा में घिर सकता है।

3. शनि और राहु का योग

  • शनि और राहु का योग, जिसे ‘शापित योग’ कहा जाता है, जीवन में गंभीर कठिनाइयों का संकेत देता है।
  • यह योग व्यक्ति को अवसाद और अकेलेपन की ओर ले जा सकता है।

4. मंगल का कमजोर या पीड़ित होना

  •  मंगल ऊर्जा और साहस का प्रतीक है।
  • यदि यह ग्रह कमजोर हो या शत्रु ग्रहों से ग्रस्त हो, तो व्यक्ति आत्मविश्वास की कमी महसूस कर सकता है।

समाधान और उपाय

ज्योतिषीय समस्याओं का समाधान संभव है।

  • चंद्रमा को मजबूत करने के लिए शिव की पूजा, शनि दोष शांति के लिए हनुमान चालीसा का पाठ और ध्यान-योग से मानसिक शांति प्राप्त की जा सकती है।
  • साथ ही, मनोवैज्ञानिक सहायता और परिवार का सहयोग व्यक्ति को नकारात्मक विचारों से बाहर निकालने में सहायक हो सकता है।

इस प्रकार, ज्योतिषीय दृष्टि से आत्महत्या के योग को समझकर समय पर उपाय करना जीवन बचाने में सहायक हो सकता है।

🌹राहु और आत्महत्या के योग🌹

  •  ज्योतिष शास्त्र में राहु को छाया ग्रह माना जाता है, जो व्यक्ति की मानसिक स्थिति, भ्रम, और गहन नकारात्मकता को प्रभावित कर सकता है।
  • राहु का प्रभाव यदि कुंडली में विशेष भावों और ग्रहों पर हो, तो यह व्यक्ति को मानसिक तनाव, निराशा और आत्महत्या जैसे विचारों की ओर प्रेरित कर सकता है।

राहु से बनने वाले आत्महत्या के संभावित योग

1. चंद्रमा और राहु का योग (ग्रहण योग)

  • यदि चंद्रमा, जो मन और भावनाओं का कारक है, राहु के साथ युति में हो, तो यह व्यक्ति को मानसिक अस्थिरता, भ्रम, और नकारात्मक विचारों की ओर धकेल सकता है।
  • यह योग अवसाद और अत्यधिक भावनात्मक संवेदनशीलता का कारण बन सकता है।

2. राहु का अष्टम भाव में होना

अष्टम भाव मृत्यु और गूढ़ रहस्यों का भाव है।

  • यदि राहु इस भाव में स्थित हो और शनि या मंगल से पीड़ित हो, तो यह व्यक्ति को जीवन के प्रति निराशा, भय और आत्मघाती विचारों की ओर ले जा सकता है।

3. राहु और शनि का प्रभाव

  • शनि और राहु की युति या दृष्टि व्यक्ति के जीवन में भारी संघर्ष, बाधाएं और मानसिक दबाव उत्पन्न करती है।
  • इसे ‘शापित योग’ कहा जाता है, जो गंभीर मानसिक तनाव और हताशा को जन्म दे सकता है।

4. राहु का पंचम या नवम भाव में प्रभाव

  • पंचम भाव बुद्धि और विचारों का प्रतिनिधित्व करता है।
  • राहु का यहां होना व्यक्ति के निर्णय लेने की क्षमता को भ्रमित कर सकता है।
  • नवम भाव का राहु जीवन के प्रति दृष्टिकोण को नकारात्मक बना सकता है।

5. राहु और लग्न का संबंध

  • यदि राहु लग्न में हो और चंद्रमा या बुध पर अशुभ दृष्टि डाल रहा हो, तो व्यक्ति आत्मविश्वास की कमी, मानसिक अस्थिरता और अकेलापन महसूस कर सकता है।

समाधान और उपाय

  • राहु के नकारात्मक प्रभाव को कम करने के लिए राहु बीज मंत्र “ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः” का जाप करें।
  • हनुमान जी की पूजा और सुंदरकांड का पाठ राहु के दुष्प्रभाव को शांत करने में सहायक हो सकता है।
  • मानसिक शांति के लिए ध्यान और योग करें।
  • जीवन में संतुलन बनाए रखने के लिए सद्गुरु या किसी अनुभवी ज्योतिषी से सलाह लें।

सामाजिक और पारिवारिक सहयोग व्यक्ति को कठिन समय में संभाल सकता है।

राहु के कारण बनने वाले योगों को समय पर पहचानकर उपयुक्त उपाय करने से आत्मघाती विचारों को नियंत्रित किया जा सकता है।

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